Medha Jha की कलम यहां इस आलेख में व्यावहारिकता के धरातल पर स्त्री के प्रति पुरुष प्रधान समाज में प्रेम की कृपणता पर आह भरती है..
आज एक मित्र का पोस्ट पढ़ा कि उनकी बिटिया ने जिद की और वे उसके लिए बिरयानी बनाने जा रहे। इस बात से अचानक स्मृतियों में कौंधा वह दृश्य जब मैं करीब नौ-दस साल की थी।
एक दिन मम्मी कार्यालय से घर (मेरे नानी घर) आई थीं और उनके लिए सब्जी नहीं बची थी, ये देख कर मम्मी का नारा़ होना स्वाभाविक था। मम्मी की नाराजगी सुन कर नाना तत्काल बाहर बरामदे से दौड़े आए और अपनी सदाबहार मुस्कुराहट से मम्मी को शांत करवाते हुए बोले – आज मैं स्पेशल सब्जी बनाता हूँ। घर के सब लोग खड़े थे और नाना सब्जी बना रहे थे अपनी प्रिय बिटिया के लिए। यह बात जितनी छोटी दिखती है, वास्तव में उतनी छोटी है नहीं।
मेरे नाना सहरसा कॉलेज के प्राचार्य थे और मम्मी अपने घर की ज्येष्ठ पुत्री तो उन्हें समस्त परिवार का खूब स्नेह मिला और इस खूब स्नेह को उन्होंने भी कई गुणित करके सबको वापस किया भी।
प्रेम किसी के व्यक्तित्व को बहुत गहरे से पोषित करता है। खूब प्रेम मिले व्यक्तियों में एक अदम्य दृढ़ता, मजबूती और आत्मविश्वास आता है। कहने की बात नहीं है कि अपने जीवन में जो कुछ बेहद मजबूत स्त्रियों से मिली, उनमें मेरी मां का स्थान सबसे ऊपर रहा है।
बहुधा लोगों को यह बोलते सुना कि स्त्रियों का दिमाग उतना खुला नहीं होता, जितना पुरुषों का। पॉपुलर इंग्लिश वेबसीरीज आउटलैंडर में भी नायक बोलता है नायिका से “स्त्रियां तुम्हारी बात नहीं समझेंगी क्योंकि वो इस क्षेत्र से बाहर गई ही नहीं।”
एक तो शुरू से स्त्रियां घरों में कैद रहीं, साहित्य या पढ़ने से भी वंचित रहीं और सबसे बड़ी बात, उस प्रेम से महरूम रहीं जो उसके उम्र के विपरीत लिंगी को सहज मिलता रहा है।
जिसे बचपन से खूब प्रेम मिलता है उनके व्यक्तित्व में एक अलग दृढ़ता आती है। ताज्जुब की बात नहीं कि स्त्रियों से संबंधित हरेक क्रांति भी भावुक पुरुषों द्वारा किया गया, या फिर बड़े घरों की उन स्त्रियों द्वारा, जिन्हें खूब प्रेम मिला और पढ़ने बढ़ने का अवसर भी। उनके पिताओं (और अगर सशक्त माता हैं तो उन्होंने भी) ने बिना किसी परवाह की उन्हें हर वो सुविधा दी जो सामान्य स्त्रियों को उपलब्ध नहीं था।
आज भी वही स्त्रियां अपने लिए, अपने अपनों के लिए या किसी भी अन्य के लिए खड़ी हो पाती हैं, जिन्हें बचपन से पर्याप्त प्रेम और पोषण मिलता है। आधी आबादी की आधी समस्या भी उसी समय खत्म हो जायेगी, जब उन्हें अपने हिस्से का बराबर प्यार मिलेगा। अन्य सारे अधिकार फिर स्वतः मिलते चले जाएंगे।
(मेधा झा)