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Wednesday, June 11, 2025

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Kshama Sharma writes: मामा की बेटी को मारा 5 माह पहले आतंकियों ने

Kshama Sharma की कलम से भी कश्मीर की आतंकी सूरत की एक झलक देखिये..

मेरी सगी मामा की लड़की के पति को शादी के पाँच महीने बाद ही कश्मीर में आतंकवादियों ने मार दिया था। कुछ दिन बाद उसके पिता की भी मृत्यु हो गई ।

इस लड़की ने अपने बच्चे को किस मुसीबत से पाला, यह वह जानती है या उसके परिजन। लेकिन साहब ज़रा सा बोलिए तो सही , इसी फ़ेसबुक पर आपको घृणा फैलाने वाला, हिंदू -मुस्लिम करने वाला, इस्लामोफोबिक , गिध्द नागपुरी संतरे, न जाने क्या-क्या कहा जाएगा। यानि कि जो अपने को सच का पैरोकार कहते हैं, वे नहीं चाहते कि आप सच बोलें। यदि हिंदू मरे हैं और मारने वालों का भी पता है तो क्या कहना चाहिए -अल्फ़ा मरे हैं और बीटा ने मारा है । या कि मोसाद, सी आई ए ने कुछ किया है।

बात तो यह है कि इस देश में सच किसी को बर्दाश्त नहीं है। इंदिरा गांधी ने इसी एक पक्षीय नैरेटिव कारण ही जान गँवाई थी। तब इस लेखिका ने दुख प्रकट करते एक लम्बा लेख लिखा था, तो लोगों ने एंटी सिख और कांग्रेसी चमचा कहा था। कुछ साल पहले लव जिहाद की अवधारणा के खिलाफ दो बड़े अख़बारों में लेख लिखे थे तो तमाम हेट मेल्स का उपहार मिला था।

यहाँ यह याद दिलाना ज़रूरी है कि इस शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल केरल के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और मार्क्सवादी पार्टी के बड़े नेता अच्युतानंदन ने किया था। उनका बड़ा भाषण एक अंग्रेज़ी अख़बार ने छापा था।सती केखिलाफ बहुत से लेख लिखे थे तो एंटी हिंदू कहा गया था। ऐसी न जाने कितनी घटनाएँ हैं जहां लो ग अपने-अपने हिसाब से जजमेंट देते हैं ।

दरअसल घृणा फैलाने वाले यही लोग हैं जो अपने अलावा किसी और को सुनना नहीं चाहते । हिंदू मरें तो उनके बारे में कुछ भी लिखना अपराध कैसे हुआ। किस क़ानून और संविधान में लिखा है ऐसा? लाशों की राजनीति करने वालों की उँगलियाँ अक्सर दूसरों की तरफ़ उठती हैं। लेकिन याद रखिए यदि आपके हाथ में कलम है तो ये हाथ भी ख़ाली नहीं हैं।

यदि black lives matters हो सकता है Muslim lives matters हो सकता है तो Hindu lives matters क्यों नहीं हो सकता है? पीटते रहिए ढोल कि हाय, हाय RSS के स्लीपर सैल वाले निकल आए हैं । आपके कहने से क्या हो जाएगा? सिर्फ़ इसके कि लोग आपसे भी घृणा करने लगें। आप भी कभी न कभी साम्प्रदायिक राजनीति के शिकार होंगे ।

यों आप कहते हैं कि औरतों को RSS में रखा नहीं जाता।ईरान में खोमेनी की वापसी याद आती है । वहाँ जिन लोगों ने शाह के खिलाफ अभियान और खोमेनी के पक्ष में आवाज़ उठाई थी, उनमें से बहुत से खुद को इस्लामिक मार्क्सिस्ट कहते थे। जब खोमेनी पेरिस से लौटे तो उनकी कार को कंधों पर उठा लिया गया था। लेकिन बाद में खोमेनी ने चुन- चुनकर इन्हीं इस्लामिक मार्क्सिस्ट को मारा था। शाह ने औरतों को बुर्के सेनिकाला था। खोमेनी ने वापस उन्हें उसी में लपेट दिया था।

(क्षमा शर्मा)

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