Happy WOmen’s Day! जागिये मेनका त्रिपाठी की ‘सुबह की बातें’ सुन कर अगर महिला हैं तो जीवन में..पुरुष हैं तो कभी भी !
आज घर हूँ, उत्सव ही लग रहा है, गहरी बेफिक्र नींद के बाद पक्षियों के शोर से उठने के साथ, ईश्वर को धन्यवाद के साथ गहरी साँस ले कर अनुलोम अवस्था में ठहर गई हूँ! आत्मचिंतन का आरंभ एक गहरी साँस के साथ होता है, जैसे किसी लंबे सफर के बाद ठहराव।
यह ठहराव केवल शारीरिक नहीं, मानसिक और भावनात्मक भी है। महिला दिवस के दिन यह ठहराव आत्मनिरीक्षण का प्रतीक बन जाता है—क्या मैंने खुद के लिए कुछ किया? क्या मैंने अपनी ऊर्जा को पहचाना? क्या मैं स्वयं को समय दे पाई? यहाँ हर स्त्री का सोच रही जो रोज़मर्रा की ज़िम्मेदारियों के बीच कहीं खुद को भूल जाती है।
आज के दिन को यदि समाज और परिवार की भूमिका मे देखती हूँ —मजदूर स्त्री, गृहिणी, माँ, पत्नी, कामकाजी महिला—जो सबको संवारने में लगी है। कामवाली बर्तन धोते हुए भी गा रही है मानो पीतल लोहा माँझ कर स्वर्ण रजत बना देगी ,देखती हूँ कठिन परिश्रम से मजदूर स्त्री की मुस्कान ईंटों को सुर्ख कर रही है, और एक माँ अपने बच्चों के टिफिन को कितने जतन से भरती है । लेकिन इसके साथ एक सवाल भी उठता है—क्या यह सब देने के बाद भी उसे वो सम्मान, वो विश्राम, वो प्रेम मिलता है जिसकी वो हक़दार है?
महिला दिवस केवल उत्सव नहीं, बल्कि स्त्री शक्ति का प्रतीक है। यहाँ सोचना होगा कि स्त्री कोमलता से कठोरता की ओर बढ़ती दिखती है। वह स्वीकार करती है कि कार्य दायित्वों के पौरुष ने उसे कठोर बना दिया, लेकिन अब समय आ गया है कि संतुलन बने।
आज की स्त्री को तेजस्विता, गरिमा, वीरता और आत्मसम्मान का श्रृंगार करना है। शक्ति केवल पुरुषत्व में नहीं, बल्कि स्त्रीत्व में भी है—और अब समाज को यह सीखना होगा कि सम्मान और प्रेम बचाने के लिए उसे इस शक्ति को समझना होगा।
महिला दिवस एक दिन का उत्सव नहीं, बल्कि एक आह्वान है—एक नई सोच, नए संतुलन, और एक आत्मसम्मान से भरे भविष्य का। यह केवल एक स्त्री की बात नहीं, बल्कि पूरे समाज की मानसिकता को देखने और बदलने की बात है।
सबको शुभकामनाएं प्रेषित करने के बाद कविता लिखूँगी खुद के लिए आपके लिए
(मेनका त्रिपाठी)