Divya Sharma writes: कल करवाचौथ है लेकिन हमेशा इस व्रत के आने से पहले अजीब से भद्दे जोक्स और मीम्स सोशल मीडिया पर घुमने लगते हैं और नारीवादियों का विरोध भी चरम पर पहुंचता है..
इसके साथ ही क्षेत्र विशेष के लोग इस व्रत का उपहास उडाने लगते हैं और इसे फिल्मों की उपज बताकर अपने क्षेत्र के व्रतों को ग्लोरीफाई करने लगते हैं कीजिए अच्छी बात है लेकिन परंपराओं की अधकचरी जानकारी के साथ नहीं।खैर ऐसे लोगों को छोडिए।यहाँ मैने करवाचौथ व्रत पर कुछ तथ्यात्मक जानकारी जुटाई है जो आप लोगों के साथ शेयर कर रही हूं।
करवाचौथ: फिल्मों की उपज नहीं, शास्त्रों से निकला सनातन व्रत
हर साल करवाचौथ के अवसर पर सोशल मीडिया पर कुछ “आधुनिक” आवाज़ें उठती हैं जो इस व्रत को “फिल्मों की देन” या “नकली परंपरा” बताकर मज़ाक उड़ाने लगती हैं। कुछ इसे पितृसत्तात्मक विचारधारा से जोड़ते हैं, तो कुछ इसे सिर्फ “पतियों के लिए दिखावा” मानते हैं।
लेकिन सवाल यह है , क्या करवाचौथ सच में बॉलीवुड ने बनाया?
क्या यह व्रत महज़ साड़ी, सजे थाल और छलनी में झाँकते चाँद का सिनेमाई प्रतीक है?
उत्तर है नहीं। करवाचौथ की जड़ें भारतीय संस्कृति और शास्त्रों में गहराई तक समाई हैं।
करवा चौथ का प्राचीन उल्लेख
करवा चौथ का प्राचीन नाम ‘करक चतुर्थी’ है। यह नाम स्वयं प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में मिलता है।
इस व्रत का उल्लेख नारद पुराण, वामन पुराण और स्कंद पुराण जैसे प्रमुख पुराणों में स्पष्ट रूप से किया गया है।
नारद पुराण में करक चतुर्थी
नारद पुराण के पूर्वार्ध के 113वें अध्याय में वर्षभर की चतुर्थी तिथियों के व्रतों का विस्तार से वर्णन किया गया है। इसी संदर्भ में “करक चतुर्थी” का उल्लेख आता है, जिसमें यह कहा गया है कि इस दिन किया गया व्रत अखंड सौभाग्य, पति की दीर्घायु और पारिवारिक कल्याण के लिए फलदायी होता है।
पौराणिक कथाओं में देवी पार्वती के व्रत का उल्लेख
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए करवा चौथ व्रत रखा था।एक कथा में इंद्र की पत्नी शची के द्वारा इस व्रत को सबसे पहले करने का उल्लेख है ताकि देवता युद्ध जीत सके।ऐसा उन्होंने ब्रह्मदेव के कहने पर किया।
इस कथा का मूल भाव यह है कि यह व्रत केवल पति के दीर्घायु के लिए नहीं, बल्कि प्रेम, समर्पण और आत्मसंयम के प्रतीक के रूप में भी रखा जाता है।
स्कंद पुराण में उल्लेख
स्कंद पुराण के कुमारी खंड में करवा चौथ व्रत का उल्लेख मिलता है, जहाँ इसे स्त्री के सौभाग्य और पति की रक्षा से जोड़ा गया है। यह दर्शाता है कि यह व्रत उस समय से प्रचलित था जब भारतीय समाज की धार्मिक परंपराएँ अपने प्रारंभिक स्वरूप में थीं।
महाभारत में भी संदर्भ
महाभारत के वनपर्व में एक प्रसंग आता है । जब अर्जुन तपस्या करने हिमालय गए थे और पांडवों को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। तब भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को करक चतुर्थी का व्रत रखने की सलाह दी, ताकि अर्जुन की रक्षा और परिवार की स्थिरता बनी रहे। यह कथा स्पष्ट रूप से बताती है कि करवाचौथ की परंपरा महाभारत काल से भी जुड़ी हुई है, यानी हजारों साल पुरानी है।
‘करवा चौथ’ नाम का अर्थ
संस्कृत में “करक” का अर्थ है मिट्टी या धातु का छोटा घड़ा वही “करवा” जो आज भी व्रत में उपयोग किया जाता है। “चतुर्थी” का अर्थ है चंद्रमा की चौथी तिथि। अर्थात्, करक चतुर्थी वह दिन है जब स्त्रियाँ करक (घड़ा) के प्रतीक से पूजा करती हैं, चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं और परिवार के सुख-समृद्धि की प्रार्थना करती हैं।
सिर्फ पति की दीर्घायु नहीं, स्त्री की आत्मशक्ति का प्रतीक
अक्सर यह कहा जाता है कि करवाचौथ सिर्फ “पति के लिए उपवास” है। लेकिन प्राचीन ग्रंथों में इस व्रत को स्त्री की आत्मशक्ति, तप और मानसिक दृढ़ता से भी जोड़ा गया है। यह एक ऐसी परंपरा है जहाँ स्त्री अपने संकल्प से ऊर्जा अर्जित करती है अपने परिवार, अपने रिश्तों और अपने विश्वास के लिए।
फिल्मों ने सजाया, बनाया नहीं
यह सही है कि “दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे”, “कभी खुशी कभी ग़म” या “हम दिल दे चुके सनम” जैसी फिल्मों ने करवाचौथ को
रोमांटिक रंग दिया ।पर उन्होंने इस व्रत को “जन्म” नहीं दिया, बल्कि प्रकाश में लाया।
फिल्मों ने करवाचौथ के सौंदर्य को दिखाया, लेकिन इसकी आत्मा शास्त्रों और लोककथाओं में सदियों से विद्यमान रही है।
संस्कृति को तोड़ना नहीं, समझना सीखिए
करवा चौथ जैसी परंपराएँ हमारी सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा हैं। इन परंपराओं का उद्देश्य स्त्री को नीचा दिखाना नहीं, बल्कि उसके त्याग और शक्ति को मान्यता देना है। फिल्में चाहे इसे सजा दें, पर इसकी जड़ें हमारे धर्मग्रंथों, पुराणों और ऐतिहासिक कथाओं में हैं ।जहाँ यह व्रत सौभाग्य, समर्पण और प्रेम का प्रतीक है, न कि दिखावे का।
करवा चौथ कोई “नया त्यौहार” नहीं यह भारत की आत्मा का उत्सव है।वह आत्मा जो प्रेम में तपस्या देखती है, और समर्पण में शक्ति। जब अगली बार कोई कहे कि करवाचौथ फिल्मों से आया है उन्हें बस इतना कहिए कि नारद पुराण, वामन पुराण, स्कंद पुराण और महाभारत में जिस व्रत के महत्व का वर्णन है हम उसे ही आत्मसात किए हैं।फिल्मों ने तो बस उन पौराणिक दीपों की लौ को थोड़ा और उजला बना दिया।
तो मेरी प्यारी बहनों जो भी इस व्रत को कर रही हैं खुशी से उत्साह से कीजिए।क्योंकि स्त्री है तो संस्कृति है स्त्री है तो पर्व है परंपरा है।वरना जीवन नीरस है।
(दिव्या शर्मा)



