27.8 C
New York
Wednesday, June 11, 2025

Buy now

spot_img

Book Review: Juvi Sharma’s Book – अबोली की डायरी

Book Review: अबोली की डायरी की समीक्षा की है यायावर एक पथिक अर्थात डॉक्टर दिलीप कुमार पारीक ने..
निमज्जन…..
शब्द सार्थक होते हैं पर अर्थ की प्राप्ति कैसे हो ? क्या हमारे द्वारा प्रयुक्त प्रत्येक शब्द को हमने कोश ग्रंथ से पुष्ट किया। मैं इस शब्द को स्वच्छता के संदर्भ में ले रहा था पर यह तो डूब कर मज्जन के अर्थ का द्योतक है।
कौन डूबता होगा ?
“ये उ विद्यायां रता:”
वो जो जानता है वो डूबता है। अबोली जानती थी। वेदना और उससे निसृत निराशा की अम्लीय वर्षा को। स्मृतियों के अकल्पित दंश ने विस्मरण को वरदान बनाया था। अबोली अनुभवजन्य सिद्धांत की प्रतिपादिका है।
“भूलना है बोलकर हम और उन काली स्मृतियों को खाद-पानी देते रहते हैं।”
और वरदान सहज कहाँ। अबोली निमज्जन में काशी के सहानुभूति पाश में जकड़ी है। प्रेम बहुत प्रेम से जकड़ता है। अनंग के तरंग का अपना एक रंग है। आँखें खूबसूरत हो जाती हैं और शरीर हल्का। अबोली उड़ रही है , अबोली प्रेम में है। मेरे अधरों पर सहज मुस्कान बिखर गई। मैं इसके इंतजार में था। एक श्वेत वस्त्र बिछाया गया है और उस पर कीच फैला दिया गया। अबोली कीच में पद्म उगा रही है। लोक-लीक-लाज से सर्वथा विलग हो। अबोली गिर पड़ी और न जाने क्यों इस डायरी को पढ़ यह गिरना मुझे भाया। पतित से पावनता के ऊर्ध्वगमन की संभावना होती है। गिरने से उठने की सुंदरता के दृश्य बन सकते हैं। अबोली की वैचारिक परिपक्वता जीवन को परिभाषित करने में सक्षम हो गई…
“पहले कहाँ मालूम चलता है कि जहर जहरीला है जब तक उसे चाट न लिया जाए।”
विषावलेहन के परिणाम में शिवत्व की संभावना है। अबोली आशंका से गुजरती हुई संभावना तक की दूरी तय कर पाई। कर्ता-प्रेरक-अनुमोदक सब निमज्जन में हैं पर अब वह लोक में पापकर्म के हैं। पानी सर पर डालना और डूब कर स्नान करना बहुत फर्क है दोनों बातों में। डूबने के बाद डूबने की कामना मर जाती है। भावों का अतिरेक आपको वो दिखा सकता है जो अकल्पनीय व अदृष्टपूर्व है। भावों पर प्रेम का पाश विमुख करने में सक्षम है।
काशी को अबोली का शाप लगा है। सुना है समय आप्त वचन का अनुगामी है। सत्य सिद्ध हुआ।
“घमण्डी व्यक्ति हर जगह केवल स्तुति सुनना चाहता है।” कितनी सहजता से सत्य उद्घाटित किया गया है। बहुत सी बार मुझे लगा कि जो मैं समझ गया वो मैं समझा सकता हूँ। अबोली की डायरी निमज्जन तक पढ़ने के बाद लगा कि समझाना कोई क्रिया है ही नहीं, समझना ही एकमात्र क्रिया है।
निमज्जन में शब्दों को उसी अधोगति के साथ लिखा गया जिस अधोगति को प्राप्त प्रयोक्ता ने प्रयुक्त किया। हर गिरा आदमी गिरे हुए शब्द से साहचर्य रखता है।
अबोली डूबी, मैं भी डूबा और डायरी के न जाने कितने पात्र डूबे। कहाँ….. वहाँ जिसके वो लायक हैं।
मैं विसर्जन को छू चुका हूँ। पता नहीं क्यों अब इसे पढ़ने से डर नहीं लग रहा।
जुवि शर्मा की निश्छलता और न्यायप्रियता इस अंश को भगवदाराधना सम बनाती है।
अशेष और अपरिमित ….……।
(डॉ. दिलीप कुमार पारीक)

 

(इस विश्व के प्रथम मात्र-महिला मंच OnlyyWomen पर धरा की प्रत्येक महिला लेखिका व पाठिका का ससम्मान स्वागत है !!)

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

0FansLike
0FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles