B for Book: राही मासूम रज़ा की पुस्तक ‘टोपी शुक्ला’ पर अर्चना आनंद की कलम का संक्षिप्त-सारगर्भित आकलन ..
“…यह कहानी इस देश, बल्कि इस संसार की कहानी का एक स्लाइस है। स्लाइस रोटी से कटकर भी रोटी का ही अंश रहता है। प्रेमचंद अमरकान्त और सकीना की शादी नहीं करवा सके, क्योंकि वह कहानी भारतीय जीवन का एक स्लाइस है।”
“मैं हिन्दू – मुसलमान भाई – भाई की बात नहीं कर रहा हूं। मैं यह बेवकूफी क्यों करूं? क्या मैं रोज अपने बड़े या छोटे भाई से यह कहता हूं कि हम दोनों भाई – भाई हैं? यदि मैं नहीं कहता तो क्या आप कहते हैं? हिन्दू – मुसलमान अगर भाई – भाई हैं तो कहने की जरूरत नहीं। यदि नहीं हैं तो कहने से क्या फर्क पड़ेगा?”
…सुना जाता है कि पहले जमाने में नौजवान मुल्क जीतने, लम्बी और कठिन यात्राएं करने, खानदान का नाम ऊंचा करने के ख्वाब देखा करते थे। अब वे केवल नौकरी का ख्वाब देखते हैं। नौकरी ही हमारे युग का सबसे बड़ा एडवेंचर है। आज के फाहियान और इब्ने बतूता , वास्कोडिगामा और स्काट नौकरी की खोज में लगे रहते हैं!
– डॉ राही मासूम रज़ा, टोपी शुक्ला में
कुछ पुस्तकें अपनी कहानी स्वयं कहती हैं। यह पुस्तक उस महीन धागे से बुनी गई है जिसे कालांतर में भारत कहते थे। छीजने से पहले यह चादर कितनी सुन्दर थी, आप इस पुस्तक में अनुभव कर सकते हैं। धारावाहिक महाभारत की पटकथा लिखने वाले लेखक की यह कृति पढ़ी जानी चाहिए, ऐसा मेरा मत है!