Archanan Anand Bharti writes: आज की मीडिया की कलई खोलता अर्चना आनंद का यह लेख वह भावना है जो हम सबकी अनकही सोच की प्रतिनिधि है..नाश हो ऐसे मीडिया का -ऐसा हमें प्रायः सोचना पड़ता है..
वो समाचार देखा आपने, एक युवक को घेरकर चार लड़के गोलियां बरसा रहे हैं और जब वह युवक कटे वृक्ष की तरह गिरता है तब एक और गोली मारकर सुनिश्चित करते हैं कि काम तमाम हो गया है। घटना बिहार के गया की है, वही बिहार जहाँ अपराधियों की बहार है। वही बिहार जो देश के अन्य भागों में गाली की तरह बरता जाता है।
अब न्यूज चैनलों के थंबनेल्स देखिए – फिल्मी अंदाज में दिया घटना को अंजाम/ दिनदहाड़े नाटकीय ढंग से हुई हत्या/देखें फिल्मी स्टाइल में मर्डर का वीडियो… उफ्फ्! ये है हमारी मीडिया, विश्वसनीयता के मामले में ऐसे ही नीचे नहीं गिरी है भई, कड़ी मेहनत की है इसने। कायदे से इन्हें दुख होना चाहिए ऐसी घटनाओं पर।
दीपावली के दिन किसी के घर का दीपक बुझा है भाई साहब, कोई मजाक नहीं है यह। और आप ब्रेकिंग न्यूज बना रहे हैं इसे? अब आप कहेंगे कि ये तो इनका रोज का काम है, ठीक है, न हो दुख लेकिन कम से कम दुख का दिखावा तो कर ही सकते हैं।
ऊपर से नीम चढ़ा करेला यह कि वीडियो के नीचे लिख रहे हैं संवेदनशील है लेकिन पैंतालीस मिनट से वही वीडियो दिखा रहे। चैनल बदलने का लाभ नहीं क्योंकि चेहरे बदलने भर से मीडिया का चरित्र थोड़े ही बदल जाएगा। भई, महंगे सूट-बूट, घड़ियाँ, लग्ज़री कारों का शौक पूरा न हो तो क्या खाक पत्रकारिता हुई?
सुना है कि मृतक किसी नेता का बेटा था। जिस देश में रसूखदार लोग सुरक्षित नहीं, वहाँ आम आदमी की सुरक्षा की बात ही क्या है? सब राम भरोसे है। आँखें बंदकर वोट दीजिए आप, और आपके हाथ मोबाइल है न, आप वीडियो बनाइए। मनोरंजन में कमी नहीं होनी चाहिए, चाहे वह कितने भी वीभत्स ढंग से प्राप्त हो। थ्रिल आता है न?
पता है धरती का जलस्तर नीचे क्यों जा रहा है? क्योंकि हमारी आँख का पानी मर रहा है। मैं बताऊँ, मन के भीतर वह जो बैठा है न, परमात्मा का छोटा सा हिस्सा वह रोता है। इस अधोपतन को रोकिए, इतनी रौशनी में भी भीतर बहुत अंधेरा है, बहुत!
(अर्चना आनन्द भारती)



