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Archana Sherry writes: भारत कहलाता था जंबूद्वीप

Archana Sherry के इस लेख में पढ़िये किस तरह प्रकृति-प्रदत्त औषधीय उपहार जामुन बना भारतवर्ष की पहचान..

भारत को प्राचीन काल में जम्बूद्वीप कहा जाता था, और यह नाम जामुन फल से जुड़ा हुआ है। यह सचमुच आश्चर्य की बात है कि किसी देश का नामकरण एक फल के नाम पर हुआ हो! दरअसल, जामुन को संस्कृत में जम्बू कहा जाता है। भारत में यह फल बहुतायत में पाया जाता है — इसके लाखों-करोड़ों पेड़ आज भी देशभर में मौजूद हैं, और शायद यही कारण है कि जामुन हमारे देश की सांस्कृतिक पहचान बन गया।

धार्मिक ग्रंथों में जामुन का महत्व

भारतीय पौराणिक कथाओं – रामायण और महाभारत – में भी जामुन का उल्लेख मिलता है। भगवान श्रीराम ने अपने 14 वर्षों के वनवास में जामुन सहित कई अन्य फलों का सेवन किया था। वहीं श्रीकृष्ण के शरीर के वर्ण को जामुनी रंग कहा गया है। संस्कृत श्लोकों में भी ‘जम्बू’ का उल्लेख बार-बार आता है।

एक विशुद्ध भारतीय फल

जामुन पूरी तरह भारतीय मूल का फल है, और भारत के हर गली-मोहल्ले में इसके स्वाद से लोग परिचित हैं। यह एक मौसमी फल है जो स्वादिष्ट होने के साथ-साथ औषधीय गुणों से भरपूर होता है। यह अम्लीय प्रकृति का होने के बावजूद मीठा लगता है। इसमें ग्लूकोज और फ्रुक्टोज की भरपूर मात्रा होती है। जामुन में वे सभी आवश्यक लवण पाए जाते हैं जो शरीर के लिए ज़रूरी होते हैं।
जामुन के स्वास्थ्य लाभ

पाचन में सहायक – जामुन पाचन क्रिया को बेहतर बनाता है और पेट से जुड़ी समस्याओं को दूर करता है।

मधुमेह के लिए लाभकारी – यह मधुमेह रोगियों के लिए वरदान है। इसके बीज सुखाकर बनाए गए पाउडर का सेवन शुगर कंट्रोल में मदद करता है।

कैंसर व पथरी से सुरक्षा – इसमें मौजूद तत्व कैंसर से बचाव और पथरी की रोकथाम में सहायक हैं। बीज को पीसकर दही या पानी के साथ लेने से लाभ मिलता है।

दस्त में राहत – दस्त या खूनी दस्त की स्थिति में जामुन और उसके बीज लाभकारी सिद्ध होते हैं।

दांत और मसूड़ों की देखभाल – इसके बीजों से बना मंजन दांत और मसूड़ों को मजबूत बनाता है।

पोषण तत्व और औषधीय उपयोग

जामुन में कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, कैल्शियम, आयरन और पोटैशियम मौजूद होते हैं। आयुर्वेद में इसे भोजन के बाद सेवन करने की सलाह दी जाती है।

लकड़ी के उपयोग

जामुन की लकड़ी भी अत्यंत उपयोगी है। यह एक मजबूत इमारती लकड़ी है, जो पानी में भी सड़ती नहीं। यही कारण है कि इसका प्रयोग नाव बनाने में किया जाता है। पुराने समय में जलस्रोतों के पास जामुन के पेड़ लगाए जाते थे, क्योंकि इसके पत्तों में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं, जो पानी को स्वच्छ रखते हैं। आज भी कई जगह कुओं के पास जामुन के पेड़ मिलते हैं।

अगर इसके मोटे लकड़ी के टुकड़े को पानी की टंकी में रखा जाए तो उसमें शैवाल या काई नहीं जमती, जिससे टंकी लंबे समय तक साफ बनी रहती है।

किसानों के लिए अवसर

जामुन न सिर्फ स्वास्थ्यवर्धक है, बल्कि किसानों के लिए भी आमदनी का अच्छा स्रोत बन सकता है। नदियों और नहरों के किनारे मिट्टी के कटाव को रोकने में भी इसके पेड़ बेहद कारगर होते हैं। हालांकि, आज भी देश में जामुन की खेती बहुत हद तक असंगठित है। अधिकांश किसान इसकी व्यावसायिक संभावनाओं से अनभिज्ञ हैं।

जबकि सच्चाई यह है कि जामुन की मांग और बाज़ार मूल्य दोनों ही अच्छे हैं। इसके फलों से औषधियाँ, जेली और मुरब्बा जैसी खाद्य सामग्री भी बनाई जाती हैं।

संरक्षण की आवश्यकता

जामुन सिर्फ एक फल नहीं, हमारी सांस्कृतिक पहचान भी है। इसलिए इसके संरक्षण और संवर्धन की जिम्मेदारी हम सभी की है। आइए, इस अनमोल भारतीय फल को अपनाएँ और आगे बढ़ाएँ।

(अर्चना शैरी)

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