Anju Dokania की कलम कहती है कि मैं भी इस बात से पूर्णतः सहमत हूँ कि माँ जो कहती है वो होता है,माँ सब सम्भाल लेती है..
माँ का स्थान सर्वोपरि है ये तो बचपन से सुनती आ रही हूँ परंतु माँ होना कितना विशेष होता है ये स्वयं माँ बनने के उपरांत ही जाना. ऐसा नहीं है कि एक दिन में सब कुछ ज्ञात हो गया जैसे-जैसे इस रिश्ते में स्वयं को बोती गई, समझती गई कि माँ होना एक सुखद एहसास होने के साथ-साथ एक बहुत बड़ी और महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी है. एहसास का बीज तो तब ही पनप गया था जब तुम कोख में आए थे.
माँ का हृदय जुड़ा है संतान से और उसके हृदय की हर पीड़ा,हर समस्या और उस पर आने वाले हर संकट को वो पहले ही भाँप जाती है.
ये सब कुछ अपने बचपन में अपनी माँ को ख़ुद के लिए करते देखा. मैंने भी वही किया परंतु..वास्तविकता ये है कि स्वतः होता है सब . दिमाग़ को कोई निर्देश नहीं देना पड़ता कि मुझे अपने बच्चे के लिए ये करना चाहिए. सब होता गया आपे आप क्यूँकि स्वाभाविक है.
समय और जरूरतों ने उनको पंख दिए और माँ ने हौसला..” जा उड़ जा और साकार कर ले अपने सपनों को!”
वो उड़ चले अपने लक्ष्य की ओर और माँ.. वो बस देखती रही.. सुनती रही मगर अब जब उसकी ममता के फूल बड़े हो चुके हैं वो तब भी ख़ुद में उस बच्चे को महसूस करती रही जैसे गर्भावस्था में महसूस करती थी.
बच्चे के देह की मीठी सुगंध आज भी आभासित है उसके रोम-रोम में .नहला-धुला कर जब उसे टेलकम पाउडर लगा कर वस्त्र पहना कर सीने-से लगाती थी.. आह! कितना कोमल, कितना सुगंधित,मुलायम और तुम कंधों पर सर रख कर निश्चिंत हो कर सो जाते बिना किसी चिंता के. तुम्हे पता जो था कि माँ जो है .. सब सम्भाल लेगी!
परीक्षाओं के दिन और तुम्हारा दिन-रात पढ़ाई करना. इतना लंबा सिलेबस.. कैसे कर पाएगा बच्चा . तुम्हें विश्वास था कि माँ साथ बैठ कर पढ़ाएगी तो सब पूरा हो जाएगा.ये भी तुम्हारा विश्वास था मुझ पर .
उच्च-शिक्षा प्राप्त करने हेतु जाने को था तो माँ की रातों की नींद उड़ गई थी. कैसे अकेले सब कुछ मैनेज करेगा मेरा बच्चा. उसे तो खाना बनाना नहीं आता.”कहती आ जा तेरा सूटकेस बना रही हूँ, देख ले कहाँ क्या रखा है वरना तुझे परेशानी होगी बेटा.”
“अरे माँ तुम इतनी चिंता क्यों करती हो. मैं सब कर लूँगा वहाँ..”
“और खाना….? “
“मैं यूट्यूब से देख कर बना लूँगा माँ और आप तो हो ही. मुझे वीडियो कॉल पर बता देना , मैं खाना बना लूंगा.”
कितने शीघ्र बड़े हो जाते हैं ना बच्चे!
“माँ…मैंने अपने असाइनमेंट पर बहुत परिश्रम किया है. मुझे फुल मार्क्स तो मिलेंगे ना.”
“ हाँ १०० प्रतिशत मिलेंगें.मैं कह रही हूँ ना ,देखना पूरी कक्षा में तुझे सबसे अधिक अंक मिलेंगे.”
ठीक हुआ भी वैसा ही.
“माँ .. आप जो कहती हैं हो जाता है.जिस यूनिवर्सिटी में दाखिला चाहता था , आपने कहा और उसी में हुआ.आप जो कहती हैं होता है.”विस्मय से उसकी आँखे फैल गई थी जैसे पूछ रही हों कि इसके पीछे क्या रहस्य है?मैं हंस कर बोल पड़ी .
“कोई rocket science नहीं है इसके पीछे.”
हाँ एक माँ का स्थान ईश्वर के बराबर होता है.वही अपनी संतान के भविष्य की निर्माता होती है. एक माँ जो कहती है वो इसलिए साकार हो जाता है क्यूंकि उसके विश्वास की लाज रखता है वो परमपिता परमेश्वर .
एक माँ अपनी संतान के समक्ष कभी नहीं हारती .
ईश्वर ने अपना स्वरूप इस अनुपम वसुंधरा पर उतारा है माँ के रूप में . ईश्वर की प्रतिनिधि है माँ .
माँ अपने बच्चों की सुपर वुमन होती है जिसके पास वो अलौकिक शक्ति है जो संतान की हर समस्या का हल चुटकियों में निकाल देती है .
एक माँ की प्रार्थनाओं में वो बल है जो असंभव को संभव कर सकता है अपने बच्चों के लिए जो कहती है , ईश्वर उसे “तथास्तु” कर देते हैं ..क्यूँकि माँ की प्रार्थना निःस्वार्थ भाव से की गई विनती है और उसे टालना स्वयं उस पारब्रह्म के हाथों में भी नहीं.
भगवान श्री राम को माता कौशल्या ने जो संस्कार दिए वे उसी पथ पर चले. राज-पाट त्याग दिया परंतु अपने कुल पर आँच नहीं आने दी.
कृष्ण ने भी यशोदा के हर आदेश का पालन किया जबकि वे त्रिलोकी थे . श्री गणेश जी ने तो अपनी माता पार्वती जी की ही परिक्रमा कर डाली जब उनको पृथ्वी का चक्कर लगाने को कहा गया.
युग बदले समाज बदला परंतु हमारा सनातन सदैव यही कहता है -“मातुः चरणयोः स्वर्गः अस्ति !!”
अर्थात् माँ के चरणों में स्वर्ग है!!
माँ कभी नहीं हारती.. वो तब हारती है जब उसकी महत्ता,उसके साथ और उसके प्रयासों को नकारा और भुला दिया जाता है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण है वृद्धाश्रम और बुजुर्गों का एकल जीवन.
मैं भी इस बात से पूर्णतः सहमत हूँ कि माँ जो कहती है वो होता है,माँ सब सम्भाल लेती है!!..सब कुछ
(अंजू डोकानिया)