28.4 C
New York
Wednesday, June 11, 2025

Buy now

spot_img

Dr Menaka Tripathi writes: भाषा की रसीली खोज

Dr Menaka Tripathi की लजीज कलम से एक और जायकेदार लेख..पढ़िये कम, स्वाद अधिक लीजिये..

कुंडलिका, जल-वल्लिका’जलाबिया, जलाविका के नाम से संबोधित य़ह मिष्ठान विश्व विख्यात है, जिसके विषय में एक से एक रोचक किस्से कहे सुने जाते रहे हैं , कहते हैं बगदाद के एक हलवाई के मैदे का घोल पतला हो गया उसने जल्दी मे गोल गोल घूमा कर कहा हदी जल्ला बिया अर्थात बिगड़ गया, बिगड़ गया ! अपभ्रंश रूप घिस कर हो गया जला बिया!

हौब्सन-जौब्सन के अनुसार, जलेबी अरबी शब्द ‘जलाबिया’ या पर्शियन शब्द ‘जलिबिया’ से आया है. मध्यकालीन पुस्तक ‘किताब-अल-तबीक़’ में ‘जलाबिया’ नामक मिठाई का ज़िक्र है. यह ईरान में ‘जुलाबिया या जुलुबिया’ नाम से जानी जाती है. इतिहास के पन्नों को पलटते हैं, तो 10वीं शताब्दी की अरबी पुस्तक में ‘जुलुबिया’ का जिक्र हैं!

रस से परिपूर्ण होने की वजह से इसे रसाविका नाम मिला और फिर इसका रूप जलेबी हो गया। 16 वीं सदी में जलेबी भारत में पश्चिम एशिया से आई है. . इसके साथ, ‘भोजनकुटुहला’ नामक किताब और संस्कृत पुस्तक ‘गुण्यगुणबोधिनी’ में जलेबी के बारे में लिखा गया है.15वीं शताब्दी तक जलेबी हर त्यौहार में इस्तेमाल होने वाला एक ख़ास व्यंजन बन चुकी थी.

यहां तक कि यह मंदिरों में बतौर प्रसाद के रूप में भी दी जाने लगी थी, उज्जैन में पोहा के साथ, तो कहीं खीर के साथ, बनारस में समोसे का साथ मैंने खूब छक कर खाया है, नाश्ते के रूप में गाढ़ी दही के साथ 17 वी शताब्दी के मध्य तक खूब प्रचलन में था!

भारत में जलेबी पर्शियन व्यापारी, कलाकार और मध्य-पूर्व आक्रमणकारियों के साथ पहुंची. उत्तर भारत में यह जलेबी नाम से जानी जाती है, जबकि दक्षिण भारत में यह ‘जिलेबी’ नाम से जानी जाती है. जबकि यही नाम बंगाल में बदलकर ‘जिल्पी’ हो जाता है. गुजरात में दशहरा और अन्य त्यौहारों पर जलेबी को फाफड़ा के साथ खाने का भी चलन है, हरिद्वार शिव मूर्ति के सामने गली मे गुजराती नाश्ता चखना हो तो सुबह सुबह फाफड़ा के साथ स्वाद चख सकते है! जलेबी की कई किस्म अलग-अलग राज्यों में मशहूर हैं.

इंदौर के रात के बाजारों से बड़े जलेबा, बंगाल में ‘चनार जिल्पी, मध्य प्रदेश की मावा जंबी या हैदराबाद का खोवा जलेबी, आंध्र प्रदेश की इमरती या झांगिरी, जिसका नाम मुगल सम्राट जहांगीर के नाम पर रखा गया!मैं तो इमरती को जलेबी की जेठानी कहती हूँ!

हरिद्वार की गंगा मे डुबकी लगा कर घाट किनारे बाजारों में गर्म दूध के कुल्हड़ पकड़े हुए कुरकुरी स्वर्ण जलेबी खाते हुए यूँ ही याद आ जाता है इतिहास, सोचा स्वाद आप तक भी पहुँचा दूँ!

(डॉ मेनका त्रिपाठी)

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

0FansLike
0FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles