Sujata writes: मार्च 11, 1689 आज ही के दिन छत्रपति संभाजी महाराज (शिवाजीराजे भोसले) क्षत्रिय धर्म निभाते हुए राजधर्म निभाते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे..
कल रात ही मैने भी “छावा” फिल्म देखी…. यह फिल्म एक मिसाल है कि देश वीर योद्धाओं के जीवन पर फिल्म बनाए तो कैसे बनाएं! यही नहीं, पहली बार किसी फिल्म निर्देशक ने हिम्मत की है औरंगजेब जैसे क्रूर शासक की क्रूरता, विक्षिप्तता और दरिंदगी को दिखाने की!
जोधा अकबर से लेकर बाजीराव राव मस्तानी तक भरी पड़ी है सुपरहिट हिंदी फिल्में जिनमें मुगल शासकों को बेहद खूबसूरत, मानवीय,सलीकेदार दिखाया जाता है…जो अपनी पत्नियों को बहुत चाहते हैं…बाजीराव जैसे योद्धा पर फिल्म बनाई तो उसे मस्तानी का आशिक बना के मरवा दिया!
बाजीराव को नाचते,कूदते, दिखाया, रोमांस करते दिखाया..पत्नी को धोखा देकर मस्तानी के लिए पूरी परिवार से लड़ते दिखाया! पद्मावत में अलाउद्दीन खिलजी को रानी पद्मावती का महान प्रेमी दिखा दिया… भव्य सेट बनाकर,डिजायनर कपड़े पहनकर, भव्य संगीत,नृत्य,कोरियोग्राफी दिखाकर ऐतिहासिक तथ्यों का बंटाधार करने वाले “संजय लीला भंसाली” और आशुतोष गोवारिकर जैसे फिल्मकारों को डूब मारना चाहिए “छावा” जैसी सच्ची और ईमानदार फिल्म देखकर!
भंसाली जी, सच बिल्कुल खरा होता है,बेबाक होता है और इसीलिए सच आकर्षक होता है!सुकूनभरा होता है! झूठ को भव्य बनाकर ,सजा – धजाकर बेचा जाता है आपकी फिल्मों की तरह! छावा फिल्म में वो सब कुछ है जो आपकी फिल्मों में कभी नहीं होता! एक मजबूत पटकथा!तथ्य और मजबूत कहानी….
जिसके पास सच कहने की हिम्मत हो उसे फिर भव्य सेट, संगीत, मेकअप, स्टारकस्ट की फिगर और बॉडी दिखाने की जरूरत नहीं पड़ती! यह सत्य की ही ताकत है इस फिल्म की सफलता और लोकप्रियता! ….