Poetry by Pallavi Vinod: क्रिकेट की दुनिया का सबसे शानदार मैच आप यदि इसे कहें तो अतिशयोक्ति न होगी ..किन्तु एक नायिका उभरी इसके बाद जिसने हर हिंदुस्तानी की आँखों में ख़ुशी के आंसू झलकाये – जेमाइमा रॉड्रीगेस
आख़िर क्यों आँसू निकल आते हैं
तुम्हारी हर उपलब्धि पर
तुम्हारी हर जीत
क्यों अपनी जीत लगती है
ऐसा लगता है जैसे ख़ुद ही खड़ी हूँ हाथ में बल्ला लिए
जैसे मैं ही हॉकी लिए सरपट भाग रही हूँ
जैसे मैं ही हूँ जो रिंग में मुठ्ठियाँ भीचें फफक रही हूँ
यहाँ तक आने में तुमने जिस रास्ते को पार किया है
उस सफ़र को देखा है मैंने
वो आँखें जो तुम्हारी शर्ट और शॉर्ट्स पर चिपकी हुई हैं
वो लहज़ा जो व्यंग्य की चटनी में लपेट
तुम्हारे पिता को पकौड़ियों संग खिलाया गया था
उसका स्वाद जानती हूँ मैं
सपने देखना और उसे पूरा करने की कुव्वत रखना दो अलग बातें हैं
लेकिन उन्हें नहीं पता कि सपने देखने के लिए
नींद भी बहुत मुश्किल से मिली है तुम्हें
तुम आधी आबादी से लगभग पचास साल पीछे हो
इस दर्द का उन्हें अनुमान तक नहीं है
तुमसे दस-बीस साल बड़ी तितलियों
के पंख भी तुम्हारे जितने ही सुंदर थे
जिन्हें नोचते नाखून अक्सर उनके अपने ही थे
किसी दोस्त ने कहा था, “कॉलेज बदलते ही एक ये लफड़ा खड़ा हो जाता है, चरित्र प्रमाण पत्र”
मैंने मुस्कुराते हुए कहा था
कभी हमारे बारे में सोचा है
हम तो जाने कबसे इसे
हर गली, हर मोहल्ला, हर आँख, हर कान को दे रहे हैं
फिटनेस सर्टिफिकेट को हर महीने
पास करने वाली लड़कियों
अपनी इस उपलब्धि को उनके बराबर मत आँकना
इस जीत को अपने सीने में चिपका लेना
इस मुकाम पर देर से आना तुम्हारी नहीं इस समाज की विफलता है
लेकिन यह सफलता और इसके बाद मिलने वाली हर सफलता सिर्फ तुम्हारी है
तुम्हारी मुस्कुराहट का स्वाद पहचानते हैं हम
इन आंसुओं की कहानी हम जी चुके हैं लड़कियों !
(पल्लवी विनोद)



