(STORY)
दो तीन दिन पहले की बात है। अपनी 8 बर्षीय पुत्री को स्कूल से घर वापस लाने तीन बजे स्कूल के गेट पर पहुंच गया था। तीन बजकर दस मिनट से जुनियर के.जी. के छात्र बाहर आना शुरू करते हैं जबकि सीनियर छात्र तीन बजे से। गेट पर अभिभावकों की भीड़ लगी थी। एकाएक तेज बारिश शुरु हो गई। सभी ने अपनी छतरी तान ली। मेरे बगल में एक सज्जन बिना छतरी के खड़े थे। मैंने शिष्टाचार वश उन्हें अपनी छतरी में ले लिया।
*”गाडी से जल्दी जल्दी में आ गया, छतरी नहीं ला सका।”* उन्होंने कहा।
*”कोई बात नहीं, ऐसा हो जाता है।”*
जब उनका बेटा रेन कोट पहने निकला तो मैंने उन्हें छाता से गाड़ी तक पहुंचा दिया। उन्होंने मुझे गौर से देखा और धन्यवाद कहकर चले गए।
कल रात में नो बजे पाटिल साहब का बेटा आया।
*”अंकल गाड़ी की जरूरत थी। रूबी (उस की छ:माह की बेटी) की तवियत बहुत ख़राब है।उसे डाक्टर के पास ले जाना है।”*
अंधेरी बरसाती रात में जब डाक्टर के यहां हमलोग पहुंचे तो दरवान गेट बंद कर रहा था। कम्पाऊंडर ने बताया कि डॉ.साहब लास्ट पेशेंट देख रहे हैं , अब उठने ही वाले है।अब सोमवार का नम्बर लगेगा।
मैं कम्पाउंडर से आज ही दिखाने का आग्रह कर ही रहा था कि डाक्टर साहब चैम्बर से घर जाने के लिए बाहर आए। मुझे देखा तो ठिठक गए फिर बोले, *”अरे आप आए हैं सर, क्या बात है?”*
कहना नहीं होगा कि डाक्टर साहब वही सज्जन थे जिन्हें स्कूल में मैंने छतरी से गाड़ी तक पहुंचाया था।
डाक्टर साहब ने बच्ची से मेरा रिश्ता पूछा।
*”मेरे मित्र पाटिल साहब की बेटी है। हमलोग एक ही सोसायटी में रहते हैं।”*
उन्होंने बच्ची को देखा, कागज पर दवा लिखी और कम्पाउन्डर को हिदायत दी,
*”यह इंजेक्शन बच्ची को तुरंत लगा दो और दो तीन दिन की दवा अपने पास से दे दो।”*
मैंने एतराज किया तो बोले,
*”अब कहां इस बरसाती रात में आप दवा खोजते फिरेंगे सर। कुछ तो अपना रंग मुझ पर भी चढ़ने दीजिए।”*
बहुत कहने पर भी डॉ.साहब ने ना फीस ली ना दवा का दाम , और अपने कम्पाउंडर से बोले,
*”सर हमारे मित्र हैं, जब भी आयें तो आने देना।”*
गाड़ी तक पहुंचाने आये और कहा,
*”सर आप जैसे निस्वार्थ समाजसेवी क्या इसी दुनिया में रहते हैं?”*
निस्वार्थ सेवा करते रहिए शायद आप का रंग औरो पर भी चढ़ जाये , जिसे भी आवश्यकता हो निःस्वार्थ सेवा भाव से उसकी मदद करें आपको एक विशिष्ट शांति प्राप्त होगी।
(मधु सिंह)