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Monday, August 4, 2025

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Nudity: पैसे और शोहरत की अंधी दौड़ में मर्यादा भूलते लोग – नयी मिसाल खुशी मुखर्जी

Nudity:शील और मर्यादा के देश भारत में आज विडंबना यह है कि ये लोग आधुनिकता का मतलब सिर्फ़ शरीर दिखाने और कपड़े कम पहनना समझते हैं..

आजकल लोग पैसा कमाने और फेमस होने के लिए किसी भी हद तक जा रहे हैं। सोशल मीडिया पर हर दिन ऐसे वीडियो और रील्स देखने को मिलते हैं जो अशोभनीय, भद्दे और अश्लील होते हैं। सिर्फ़ कुछ लाइक्स, फॉलोअर्स और वायरल होने की लालसा में लोग अपनी मर्यादा भूल रहे हैं। अफ़सोस की बात यह है कि कई नामी चेहरे भी ऐसी हरकतों में शामिल हो चुके हैं। इन्हीं में अब एक नया नाम जुड़ा है.

ये है अभिनेत्री खुशी मुखर्जी

जब उनकी फ़िल्में और करियर नहीं चला, तो उन्होंने इंस्टाग्राम पर अपनी एक अर्धनग्न वीडियो पोस्ट कर दी, जिसमें वे बिना नीचे कुछ पहने कैमरे के सामने आईं। लोगों का ध्यान खींचने के लिए उन्होंने यह बेहद सस्ता तरीका चुना।

खुशी मुखर्जी पहले स्प्लिट्सविला 10 और लव स्कूल 3 जैसे रियलिटी शोज़ से चर्चा में आई थीं। उन्होंने कुछ तमिल और तेलुगू फिल्मों में भी काम किया है और बी-ग्रेड हिंदी फिल्मों में भी अभिनय किया है।

सोशल मीडिया की दुनिया में झूठी चमक

खुशी का दावा है कि उन्होंने सिर्फ दो महीने में 10 करोड़ रुपये कमाए। उन्होंने एक एप भी बनाया था जिसमें लोग उनसे बात कर सकते थे। वे कहती हैं कि उस एप पर कोई अश्लील सामग्री नहीं थी, लेकिन एक विदेशी व्यक्ति ने उस पर एक करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च कर दिए।

पहले बोल्ड फोटोशूट, फिर ‘संस्कार’ की बातें

अक्सर देखा गया है कि कुछ लोग पहले सोशल मीडिया पर अजीबो-गरीब और उत्तेजक कपड़ों में फोटोशूट कराते हैं, और जब लोगों की आलोचना शुरू होती है, तो वे संस्कृति और धार्मिकता की दुहाई देने लगते हैं। खुशी मुखर्जी भी यही कर रही हैं—पहले नंगेपन को “फैशन” बताकर फोटो खिंचवाओ, फिर जब विरोध हो, तो हनुमान चालीसा पढ़कर खुद को ब्राह्मण बेटी और संस्कृति की रक्षक बताओ।

विडंबना यह है कि ये लोग आधुनिकता का मतलब सिर्फ़ शरीर दिखाने और कपड़े कम पहनने से जोड़ते हैं।

जबकि आधुनिकता तो सोच और विज्ञान में होनी चाहिए, न कि कपड़ों की लंबाई में। अगर कोई व्यक्ति बार-बार ऐसा व्यवहार करता है जिससे समाज में भटकाव और अश्लीलता फैलती है, तो उसकी आलोचना होनी चाहिए। ज़रूरत है कि इस पर कानून बने, लेकिन नेताओं का ध्यान कहीं और है।

असल मक़सद – सुर्खियों में रहना, शो में जाना

जब ये सब बातें भी असर नहीं करतीं, तो कहा जाता है कि “मैं वही कर रही हूं जो मुझे सही लगता है, लोग तो हमेशा कुछ न कुछ कहेंगे।”

सच्चाई यह है कि इन सबका मकसद सिर्फ़ एक है – किसी विवाद में नाम आए, जिससे बिग बॉस या किसी और शो में एंट्री मिले और पैसा कमाया जा सके। क्योंकि जब अभिनय और प्रतिभा के बल पर जगह नहीं बनती, तो कुछ लोग चर्चा में आने के लिए इस रास्ते को चुनते हैं।

कुल मिला कर कहा जा सकता है कि –

सोशल मीडिया एक ज़िम्मेदार मंच है, लेकिन जब इसे सस्ती प्रसिद्धि का ज़रिया बना लिया जाता है, तो समाज के लिए खतरा बन जाता है। ज़रूरत है कि हम विवेक से काम लें और इस तरह की प्रवृत्तियों का विरोध करें—शब्दों से भी और नीति से भी।

(प्रस्तुति -सुमन पारिजात)

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