29.4 C
New York
Monday, August 4, 2025

Buy now

spot_img

Story by Suman Parijat: एक संवाद सोना और मोना के दिल से

Story by Suman Parijat आपको कल्पना की दुनिया के एक प्रेम-संवाद की झलक दिखाती है..

एक अजनबी-सी मुलाकात, पर भावनाओं का अद्भुत संगम। यही थी मनोज और सोनाली की पहली बातचीत। एक फेसबुक कमेंट से शुरू हुई यह कहानी धीरे-धीरे दिलों के गलियारे में उतरती चली गई।

मनोज ने सोनाली का स्वागत किया – “धन्यवाद सोनाली जी… हार्दिक स्वागत है।” और सोनाली ने बड़े ही विनम्र भाव से उत्तर दिया – “मुझे भी खुशी हुई कि मेरे जैसे शौक रखने वाले अधिक काबिल लोग मुझसे जुड़े।”

लेकिन मनोज की विनम्रता कुछ और ही कहती थी। उसने कहा, “काबिलियत दूसरों का सम्मान करने में है। और इस नजरिए से मैं आपकी सराहना करता हूं। मैं एक बहुत साधारण व्यक्ति हूं।”

इस आत्मीय संवाद में दोनों एक-दूसरे की बातों में वो भाव तलाशने लगे, जो शब्दों से परे था। सोनाली की हिंदी की सराहना करते हुए मनोज ने कहा, “क्या बात है! आपकी हिंदी बहुत अच्छी है।” सोनाली मुस्कुरा उठीं।

-बुरा तो नहीं मानेंगी अगर मैं आपको सोनाली की बजाये अगर सोना कहूं?

-नहीं, मुझे तो अच्छा लगेगा – मैं भी आपको मनोज नहीं मोना कहूंगी..ठीक है न?

-ओह..क्या बात है –सोना और मोना ..वाह !.. मुझे मोना नाम आज उतना ही अच्छा लग रहा है जितना सोना !

फिर बातों में ऋतिक रोशन का नाम आया, मज़ाक में… और इस मज़ाक में भी आत्मीयता की गहराई छुपी थी।

कुछ ही देर में, एक फेसबुक विज्ञापन के दो बार पहुंचने पर मनोज ने माफ़ी मांगी और सोनाली ने मुस्कुरा कर स्वीकार किया – यही तो था जुड़ने का पहला पुल।

बातें आगे बढ़ीं।

सोनाली ने लिखा – “आपकी उम्र आपसे धोखा करती है, ये भी तो किस्मत से होता है।”

मनोज ने कहा – “मैंने उम्र, किस्मत और ज़िंदगी से दोस्ती कर ली है। अब धोखा भी मंजूर है।”

इस वाक्य में एक जीवन का अनुभव था और एक उम्मीद का रंग भी।

सोनाली बोली – “मैं भी रिकॉर्ड बनाऊंगी, और तुम्हारे साथ भी।”

-जिन्दगी की दौड़ में तुम्हारे साथ दौड़ूंगी ..बस वजन कम कर लूं अपना जरा !

मनोज ने मुस्कुराते हुए कहा – “वजन कम हो या ज्यादा, फर्क नहीं पड़ता सोना। दिल को खुश रखो बस। यही सबसे ज़रूरी है। तुम्हारे भीतर बहुत सी ज़िंदगी बाकी है – उसे निराश मत करना।”

शायद ढेर सारी खुशियां दे दीं मनोज के शब्दों ने सोनाली को.

फिर वो क्षण आया, जब सोनाली ने लिखा –

“मैं खुश हूं कि मुझे एक ज्ञानवान, बुद्धिमान, मनोविज्ञान को समझने वाला और आध्यात्मिक व्यक्तित्व से जुड़ने का अवसर मिला। आप जैसे लोग मुझे किस्मत से मिलते गए और हर बार मैं असफलता के करीब आकर भी जीतती गई अपनी ज़िंदगी में कई बार।”

मनोज ने लिखा – “तुम जैसी सुलझी हुई और बहुआयामी प्रतिभा से मिलना मेरे लिए भी किसी उपलब्धि से कम नहीं। तुम्हारी आवाज़ और अंदाज़ से पता चलता है कि तुम एक अच्छी रेडियो जॉकी हो, लेकिन उससे भी कहीं ज्यादा मुझे तुम्हारी शालीनता प्रभावित करती है।”

बातों-बातों में सोनाली की कविताएँ सामने आईं – जो किसी जलधारा की तरह थीं, बहती हुई, चुपचाप, गहराई से भरी हुई। एक पंक्ति थी –

“एहसासों के बाजार में दुकान लगा कर – ज़िन्दगी की  मुर्दानगी को नये कपड़े पहनाये जायें !”

और मनोज ने कहा – “तुम्हारी लेखनी तुम्हारे हृदय की गहराइयों में छुपे खयालों की सच्ची अभिव्यक्ति है।”

बात ब्लड ग्रुप तक भी गई – ओ नेगेटिव और बी पॉजिटिव। फिर बातें बढ़ती रहीं – गंभीर से हास्य तक, गहराई से मासूमियत तक।

रेडियो पर सावन की बूँदों से भीगी एक स्क्रिप्ट सोनाली ने साझा की – वो बचपन की यादें, कागज़ की कश्तियाँ, और वो गीत – “ये दौलत भी ले लो, वो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी…”

मनोज ने कहा – “तुम दिल से लिखती हो, तुम्हारी कल्पना गगनचुंबी है, परंतु सजीव भी।”

बातें आधी रात तक चलीं। एक भरोसे की, अपनत्व की डोर बनने लगी।

सोनाली ने कहा – “आपको खोलने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। जहां अपनत्व और भरोसे की छाया होती है, वहाँ मैं खुली किताब हूं।”

फिर एक कविता आई जो सोना ने साझा की मोना के साथ:

“स्त्री जीवन उसके लिये वैतरणी है लमहा लमहा ..मगर पाप धोने वालों के लिये वो सदानीरा गंगा है कदम कदम पर…”

और फिर एक शृंखला-सी बन गई कविताओं की, संवेदनाओं की, आत्मीयता की।

मनोज ने हर बार बस यही कहा – “वाह! तुमने तो जैसे मेरे ही मन की बात कह दी।”

और अंत में… एक बेहद कोमल पंक्ति –

“आप मेरे लिए एक खूबसूरत एहसास हैं, जिसे मैं हर सांस में महसूस करती हूं।”

-ओह..

-कल सुबह हो न हो, तुमको सुन कर सोना चाहती हूं !

-ओह..कितने सपनीले से हैं खयाल तुम्हारे..तुमको सुनना मुझे भी अच्छा लगता है अक्सर..

यह संवाद न प्रेम कहानी है, न दोस्ती की परिभाषा। यह उन भावनाओं की कहानी थी जो अनकहे शब्दों में भी कह दी जाती हैं।

यह कहानी है आत्मीयता की, संवाद की, और उस जुड़ाव की जिसे सिर्फ दिल ही महसूस कर सकता है।

संवादों पर आधारित, सोनाली सिंह और मनोज के भावों से प्रेरित ये कहानी कभी जिन्दा थी..

(प्रस्तुति -त्रिपाठी सुमन पारिजात)

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

0FansLike
0FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles