(POETRY)
दिल ऐसे मुब्तला हुआ तेरे मलाल में
ज़ुल्फ़ें सफ़ेद हो गईं उन्नीस साल में !
ऐसे वो रो रहा था मिरा हाल देख कर
आया हुआ हो जैसे किसी इंतिक़ाल में !
ये बात जानती हूँ मगर मानती नहीं
दिन कट रहे हैं आज भी तेरे ख़याल में !
इक बार मुझ को अपनी निगहबानी सौंप दे
‘उम्रें गुज़ार दूँगी तिरी देख-भाल में !
वो तो सवाल पूछ के आगे निकल गया
अटकी हुई हूँ मैं मगर उस के सवाल में !
~हिमांशी बाबरा