Dream Talk -1: ये है स्वप्न-वार्ता का प्रथम भाग जो संजना के सपने में फीरो से हुई..
संजना – कैसे हैं आप, फाइटर?
फीरो – वैसा ही हूं जैसी मेरी फाइटरनी है
संजना – ओ हो हीरो
संजना – क्या कर रहे हो
फीरो – मिस कर रहा हूं अपनी आगरा वाली मिस को
फीरो – आज हीरोइन बहुत ग्लैड दिख रही है
संजना – मिस तो मिसफिट हो गई है अब
फीरो – कोई बात नहीं
संजना – अपने फाइटर को देखा तो ग्लैड तो होना ही है न..
फीरो – हां मिसफिट होने से कोई फर्क नहीं पड़ता..हम यादों से काम चला लेंगे
संजना – मिस्टरफिट ऐसे ही होते हैं
फीरो – नहीं, मिसफिट ऐसे होते हैं जो यादों में भी मिसफिट हो जाते हैं
फीरो – हम आपको याद करके अपने सपनों को खूबसूरत कर लेते हैं
संजना –अच्छा जी?
फीरो – आप हमारे लिये हमेशा पहले जैसी हो
संजना – पर आप मेरे लिये अभी तक याद नहीं बन पाये हो..
फीरो – क्या याद करना चाहती हो?
संजना – पंद्रह साल हो गये याद करते करते
फीरो – राजस्थान को वो ट्रिप जो हम दोनो साथ साथ गये थे..याद आता है कभी?
संजना – ओह..
फीरो – हम साथ साथ ठहरे थे और..भरी गर्मी में भी मौसम सुहाना कर दिया था आपके साथ ने..
संजना – ओह..सच कहूं तो भूल जाना चाहती हूं वो सब
फीरो – अच्छा है याद मत रखो..अब तुम्हारी उमर भी तो ऐसी है कि अब तो ईश्वर को याद करो..वो कभी भी याद कर सकते हैं..
संजना: मुझे तो कुछ और याद रहता है
फीरो – क्या याद रहता है जी? प्लीज मुझे भी बताओ
संजना – फाइटर की मुस्कान ..वही है जो भूल नहीं पाती
फीरो: ओहो..अब तो सेन्टी कर दोगी, सुन्दरी
संजना: स्टेशन पर ट्रेन से उतरते हुए तुम्हारी वो मुस्कान…
फीरो: ओह्हो…बस कर अब, रुलाएगी क्या..
संजना: बहुत सी मीठी-मीठी यादें हैं।
संजना: तो ठीक है आज जी भर के रो लो।
फीरो: थैंक्स स्वीटहार्ट।
संजना: हाँ नहीं तो!
फीरो: हाँ, यहीं तो…यहीं आकर हम हो जाते हैं…
फीरो: सेंन्टी
फीरो: इतना याद करती हो मुझे?
संजना: फाइटर, मैं जानती हूँ तुम मुझे क्यों याद करते हो।
फीरो: मिलना नहीं चाहती लेकिन याद बहुत करती हो…
फीरो: कम कमाल नहीं हो आप
फीरो: हाँ बताओ मुझे।
संजना: मैं याद नहीं करती, तुम्हारी तरह बुद्धू नहीं हूँ।
फीरो: मैं क्यों याद करता हूँ? अगर बता दिया तो? शर्त लगा लो सना..जो कहोगी, हार जाऊँगा।
फीरो: मुझे बुद्धू कह रही हो?
फीरो: गलतफहमी है तुम्हारी
फीरो: मेरे पास तो…
फीरो: बुद्धि भी नहीं है.. दिल से काम चला लेता हूँ
संजना: अरे जुआरी, कुछ बचा भी है तेरी झोली में? सबको बाँट-बाँट कर…
फीरो: अकल गिरवी रखी हुई है मेरी झोली में भले ही बाकी सब बाँट चुका हूँ..
फीरो: सबसे कीमती चीज़ अब भी मेरे पास है – मेरा दिल.. वो किसी को देने का नहीं..एक बार दिया था जिसको वो अब मिलना ही नहीं चाहती
संजना: आपके दिल के तो हज़ारों टुकड़े हो गए होंगे — कोई यहाँ गिरा, कोई वहाँ।
फीरो: इसलिए वापस ले लिया है दिल अपना उससे.. हाँ जी
फीरो: टुकड़े वाली एक चीज़ मैंने सबको दी ‘दिल’ बोलके..सबने लिया, खूब लिया.. पर असली दिल मैंने झोली के अंदर छिपा लिया।
संजना: छुपे रुस्तम!
फीरो: खुली किताब हैं जी हम तो…छुपे तो रुस्तम ही होंगे..हम नहीं.. बताओ ना…क्यों मिस करते हैं सना को हम?
संजना: क्योंकि सना जैसी दूसरी कोई मिली ही नहीं
फीरो: हाँ, ये भी सही है
संजना: मिल जाती, तो रियल को भूल जाते
फीरो: नहीं, तब भी नहीं भूलते..रियल तो रियल ही होती है न…बाकी सब नकली
संजना: पर नकली ज़्यादा चमकती है ना।
फीरो: नकली की चमक तो एक धुलाई में उतर जाती है।
लेकिन असली की चमक… वो तो वायरल हो जाती है।
वो सामने वाले को भी चमकदार बना देती है..
फीरो: कभी सोच कर बताना..क्यों करता हूं याद सना को?
संजना: मैं हार गई… अब आप ही बताइए, क्यों याद करते हो मुझे?
फीरो: मैं असली बात बाद में बताता हूं,
अभी कुछ बातें… किनारे की।
मेरी सना बहुत स्वाभाविक है,
उसकी हर बात, हर अदा – एकदम नैचुरल।
उसकी हंसी, वो भी तो कितनी उजली और मोहक है।
उसका चेहरा… शायद दुनिया में बस एक ही है।
और उसका साथ… सबसे ऊपर।
उसके साथ जो सुकून मिलता है, लगता है जैसे स्वर्ग भी उतना आनंद नहीं दे सकता।
संजना: ओये होये
फीरो: हाँ, सच कह रहा हूँ..और जब वो मेरी बाहों में आती थी,
तो पूरी दुनिया भूल जाता था मैं ..काश, मैं उस पल में समाधि लगा पाता,
तो वो क्षण..स्थायी हो जाता !
संजना: ओहो
फीरो: मेरे लिए, उस जैसा मानवी सौंदर्य पूरे विश्व में और कहीं नहीं हो सकता।
संजना: सेन्टी हो गया फाइटर मेरा !
फीरो: शायद वहीं रुक जाता मैं.. टाइम मशीन को वहीं रोक देता..
संजना: बस यही तो तेरे मुँह से सुनना चाहती थी
फीरो: हाँ, उसके बाद..
संजना: मुझे यकीन था कि तुम्हें बस यही याद रहता है
फीरो: उसका प्यार, जो वो मेरे लिए अपने भीतर से निकालकर मुझे परोसती थी, वो कहीं और नहीं मिला..
फीरो: उसका प्रेम..मुझे अकाल्पनिक, अद्भुत आनंद देता था..वह प्रेम मुझे पूरी तरह से खरीद लेता था.. उस प्रेम के बदले शायद मैं अपना जीवन भी हार जाऊं, तो भी कम लगता है..
फीरो: इसलिए, ऐसी सना का साथ छूट जाना..दुर्भाग्य ही है..
संजना: सुनो, जाना है मुझे..बाद में बात करती हूं..
(सुमन पारिजात)