S For Story: पति नहीं, गहने चाहिए ! -पढ़िए इस कहानी को शायद पसंद आये आपको..
पति नहीं, गहने चाहिए, किस जगह पर शादी कर दी मेरे माता-पिता ने। ऐसा निकम्मा पति मिला है जो एक ढंग का तोहफा भी नहीं दे सकता। आज जन्मदिन है मेरा। और तोहफे में उठाकर क्या लाया है ये फूलों का गुलदस्ता और ये हजार रुपए की साड़ी। शादी के इन सोलह सालों में कोई साल तो ऐसा गया हो, जिसमें कोई गहना लाकर दिया हो।
इससे तो मेरी सहेली मीरा ही ज्यादा अच्छी है। उसका पति हर बर्थडे पर कुछ ना कुछ गहना उसे तोहफे में देता है। फिर वो पहनकर इतराती हुई सबको दिखाती फिरती है। यहां तो पति दूसरो को दिखाने सारे रास्ते ही बंद कर देता है। क्या दिखाओ? ये साड़ी और गुलदस्ता”
वंदना निरंतर बड़बड़ किए जा रही थी जबकि राजेश चुपचाप बैठा अपना बैग तैयार कर रहा था। साथ ही साथ उसकी बड़बड़ाहट भी सुन रहा था। वो भी क्या बोलता? पत्नी महत्वाकांक्षी थी। और अब नई-नई सहेलियों के साथ और ज्यादा हो गई। कम में खुश ही नहीं होती?
और वो ठहरा एक टीचर। महीने के पैंतीस चालीस हजार रुपए कमाने वाला। उसकी जेब ज्यादा खर्च करने से उसे रोकते।
आखिर एक मध्यम वर्गीय परिवार की भी अपनी सीमाएं होती है। जब पत्नी नहीं समझती तो पति तो इस चीज को समझेगा ही। राजेश की कोई इतनी तनख्वाह भी नहीं थी कि पूरे परिवार का खर्चा निकालने के बाद इतना पैसा निकाल पाए। दोनों बच्चों की पढ़ाई थी, अम्मा की दवाइयां थी, घर के खर्चे, रिश्तेदारी भी देखना होती थी। बच्चों की हायर स्टडीज के लिए भी कुछ तो जमा करके रखना था। आखिर मध्यवर्गीय आदमी अपना हाथ खींचे भी तो कितना? और ऊपर सोने के भाव तो वैसे ही आसमान छू रहे हैं।
और इधर पत्नी ऐसी थी जो अपनी सहेलियों को देख देख कर हमेशा उस पर दबाव बनाती कि वो उसे तोहफे में सोने के गहने ही लाकर दे। ये तक नही देखती कि उसका परिवार उसकी कितनी कद्र करता है।
वो तो रात के 10:00 बजे ही सो गई थी। उसके बर्थडे के लिए राजेश और बच्चों ने मिलकर हाॅल सजाया था। अम्मा जी ने अपने हाथों से गरमा गरम हलवा बनाया था। राजेश 10:00 बजे के बाद मार्केट जाकर खास उसके लिए केक लेकर आया था। सबको लगा था कि वो ये सब देखकर खुश होगी। पर नहीं, 12:00 बजे सब ने उसे सरप्राइज दिया तो अपने तोहफे को देखकर उसने तो
चिल्लाना शुरू कर दिया।
सबके प्यार और दुलार को सिर्फ तोहफे के पीछे कुछ नहीं समझा। सब ने प्लान कर रखा था कि आज कोई भी कहीं नहीं जाएगा, बल्कि घर पर रहकर वंदना का बर्थडे कुछ खास करेंगे।
लेकिन वंदना के इस तरह के व्यवहार से सब लोग हैरान तो नहीं, पर परेशान थे। हैरानी इसलिए नहीं हुई क्योंकि उन्हें पता था कि वो तोहफे में सिर्फ गहने सोचती है।
पर परेशान इसलिए कि सबका मूड ऑफ हो चुका था। वो कभी घर वालों की भावनाएं नहीं देखती। इसलिए सुबह होते ही बच्चे मनन और वाणी चुपचाप अपने स्कूल चले गए और अब राजेश भी स्कूल जाने की तैयारी कर रहा था। अम्मा जी भी नाश्ते में मसालेदार खिचड़ी बनाकर अपने कमरे में माला फेर रही थी। जानती थी कि आज वंदना कुछ नहीं करेगी, क्योंकि वो अभी भी बड़बड़ा रही थी।
राजेश अम्मा जी के कमरे में गया और बोला,
” अम्मा मैं स्कूल जा रहा हूं। तुम कुछ खाकर दवाई ले लेना”
अम्मा जी ने एक नजर राजेश की तरफ देखा। उसकी आंखें लाल हो रखी थी। साफ लग रहा था कि अपनी पत्नी के इस व्यवहार से वो शायद रो भी चुका है। अम्मा जी ने उसे शांत रहने के लिए इशारा किया और उसे अपने पास बुलाया। राजेश जाकर अम्मा के पास बैठ गया। अम्मा ने उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा,
” तूने कुछ खाया?”
अम्मा की बात सुनते ही राजेश की आंखों में आंसू आ गए,
” भूख नहीं है अम्मा “
” सब ठीक हो जाएगा। बस तू शांत रह और अपने आप को मजबूत कर। मैंने मसालेदार खिचड़ी बनाई है। बच्चों के टिफिन में भी वही रख दी है। तू भी वही खा ले। रुक में लेकर आई “
अम्मा की बात सुनकर राजेश कुछ कह नहीं पाया। अम्मा उठकर जाने लगी तो राजेश ने रोक दिया,
” अम्मा मुझे सचमुच भूख नहीं है। आप बैठो। बस मैं अभी निकलता हूं। टाइम से पहुंचूंगा तो सही रहेगा। आप नाश्ता कर लेना। देर हो रही है”
” रुक मैं तेरा टिफिन पैक कर देती हूं। वहां खा लेना”
राजेश ने रोकने की कोशिश की पर अम्मा मानी ही नहीं। रसोई में गई और खिचड़ी टिफिन में पैक कर दी। और लाकर राजेश को दे दिया,
” याद से खा ही लेना। भूखा मत रहना। और ज्यादा सोच मत। है ना, अभी हम कमजोर है तो क्या हुआ? भगवान ने भी तो हमारी किस्मत में कुछ लिखा ही होगा”
अम्मा उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली। अम्मा को देखकर राजेश मुस्कुराते हुए वहां से रवाना होने लगा। तभी अंदर से वापस वंदना का बड़बड़ाना शुरू हो गया,
” लो चल दिए सब लोग अपने-अपने काम पर। किसी को भी मेरी परवाह नहीं है। मैं यहां नौकर लग रही हूं सबकी। जो अपने जन्मदिन के दिन भी मुझे आराम नहीं है। पर मैं भी नहीं करने वाली काम। जा रही हूं अपने मायके। पता नहीं ऐसे लोग जो अपनी बीवी के शौक पूरे नहीं कर पाते तो शादी करते ही क्यों है “
अचानक ये शब्द राजेश के कान में पड़े तो दोबारा उसका मूड खराब हो गया।
” अम्मा तुम कहो तो तुम्हें मौसी के घर छोड़ दूं। हम लोग तो चलो अपनी अपनी जगह चले जाएंगे, लेकिन तुम्हें दिन भर इसको झेलना पड़ेगा”
” कोई बात नहीं बेटा। तू चिंता मत कर। तू बस शांत मन से अपने काम पर जा। वैसे भी ये तो अपने मायके जा रही है तो शांति रहनी ही है। फिर बच्चे भी तो घर पर आएंगे। वो कहां जाएंगे?”
अम्मा ने कहा और राजेश को वहां से ऑफिस स्कूल के लिए रवाना कर दिया और अपने कमरे में आ गई।
अभी राजेश को गए कुछ देर ही बीती थी कि वंदना भी वहां से रवाना हो गई।
वंदना के जाते ही अचानक अम्मा जी का मोबाइल बज उठा। किसी अजनबी का फोन था। उसने कहा कि राजेश का एक्सीडेंट हो गया। अम्मा रोती हुई वंदना को फोन लगाने लगी। वंदना ने फोन तो उठाया लेकिन अम्मा जी की बात सुने बगैर ही बोलना शुरू कर दिया –
” अम्मा जी आप चाहें कुछ भी कहे, मैं नहीं रुकने वाली। मैं अपने मायके जा रही हूं। कम से कम आप लोगों से अच्छा जन्मदिन तो मेरे माता-पिता ही सेलिब्रेट कर देते हैं “
” बहु वह..
इसके आगे अम्मा जी बोल ही नहीं पाई क्योंकि वंदना ने फोन काट दिया। अम्मा जी बार-बार फोन ट्राई कर रही लेकिन वंदना ने फोन ही नहीं उठाया। आखिर थक हार कर अम्मा जी पड़ोस में रहने वाली सुधा जी के घर पहुंची। और वहां जाकर उस फोन कॉल के बारे में बताया।
” अरे भाभी जी, कौन से अस्पताल में एडमिट कराया है, उसने ये नहीं बताया?”
” मैंने तो पूछा ही नहीं। मेरे तो एक्सीडेंट का नाम सुनकर ही हाथ पैर फूल गए थे ” अम्मा ने रोते हुए कहा।
” लाइए, आपका फोन दीजिए। मैं जरा फोन करके पूछती हूं उस नंबर पर”
सुधा जी ने फोन करके बात की और सारी इनफार्मेशन इकट्ठा करके अम्मा जी को लेकर अस्पताल पहुंची। साथ ही अपनी बहू को राजेश के घर की चाबी दे दी ताकि जब दोनों बच्चे आ जाए तो उन्हें घर की चाबी दे दे।
अस्पताल पहुंचकर देखा तो राजेश के सिर पर हल्की चोट लगी थी और बाये हाथ में फ्रैक्चर था। भगवान का शुक्र था कि उसे ज्यादा चोट नहीं आई थी।
हॉस्पिटल जाकर भी अम्मा ने दोबारा वंदना को फोन लगाया। लेकिन उसने फोन नहीं उठाया तो अम्मा ने भी थक हार कर फोन लगाना बंद कर दिया।
इधर बच्चे जब घर पहुंचे तो उन्हें पता चला कि राजेश का एक्सीडेंट हो गया इसलिए अम्मा हॉस्पिटल गई है। तो सात साल मनन रोने लगा। यहां तक कि पंद्रह साल की वाणी भी घबरा गई। तब सुधा जी की बहू ने अम्मा से वाणी की बात करवाई।
अम्मा ने वाणी को समझाया कि ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है। पापा को हल्की-फुल्की चोट लगी हैं। शाम तक छुट्टी मिल जाएगी तब जाकर वाणी को तसल्ली हुई और वो मनन को चुप कराते हुए घर ले आई। और घर लाकर उसे कुछ खिला-खिला सुला दिया।
शाम को राजेश और अम्मा जी के आने से पहले वंदना घर पहुंच गई। लेकिन बच्चों ने उससे कोई बात नहीं की। लेकिन अम्मा जी को घर में ना देख कर वंदना ने पूछा,
” तुम्हारी दादी कहां गई है? और तुम दोनों अकेले घर पर क्यों हो? मैं कह कर तो गई थी मैं अपने मायके जा रही हूं। फिर भी न जाने कितनी बार फोन लगा दिया। और अब तुमको अकेला छोड़ कर चली गई “
उसकी बात सुनकर वाणी को बहुत गुस्सा आया। वो अपने कमरे में गई और अपने कमरे में से अपना और मनन का दोनों का गुल्लक उठा कर ले आई और उसके सामने रखते हुए बोली,
” मम्मी आपको गहने चाहिए ना। ये दो गुल्लक है। इन्हें फोड़ लो और जो भी पैसा निकले, उससे अपने लिए गहना खरीद लेना। जानती हूं मैं कि इसमें पैसा कम है। लेकिन वादा करती हूं कि जब बड़े होकर कमाने लग जाऊंगी ना तो आपको गहने दिलवा दूंगी। पर कम से कम भगवान के लिए घर में शांति रहने दो। यूं हर समय पापा के पीछे मत पड़ी रहा करो”
आज पहली बार वंदना ने वाणी को चिल्लाते देखा था, और वह भी अपने पापा के पक्ष में। ये देखकर वंदना और ज्यादा तिल मिला गई,
” ओह! तो अब ये सिखाया जा रहा है तुम्हें मेरे खिलाफ। अरे एक औरत अपने पति से अपनी जरूरत के लिए नहीं बोलेगी तो किस से बोलेगी? तुम भी पंद्रह साल की हो गई हो, क्या तुम्हें समझ नहीं है। अपनी मां से बोलने की तमीज नहीं तुम्हें”
” तमीज की बात तो आप कीजिए ही मत मम्मी। हमने पूरी रात आपके लिए इतनी मेहनत की लेकिन आपको वो सब नहीं दिखा। आपको दिखा तो सिर्फ कि तोहफे में सोने के गहने नहीं थे। आपकी सहेलियां क्या करती है, हमें उससे कोई लेना देना नहीं। लेकिन आप क्या करती हो इससे हम सबको फर्क पड़ता है। आज पापा कितनी टेंशन में घर से निकले थे। रास्ते में उनका एक्सीडेंट हो गया। और आपको अभी भी अपने तोहफे की पड़ी है”
” एक्सीडेंट? कैसे हो गया एक्सीडेंट? मुझे बताया क्यों नहीं?”
” अम्मा आपको बार-बार फोन लगा रही थी ना। आपने एक बार फोन उठा कर पूछना भी ठीक नहीं समझा कि वो फोन क्यों लगा रही थी। आपको ठीक लगेगा भी क्यों? आपको तो गहने चाहिए। पति से आपको क्या लेना देना “
अपनी बेटी के पास सुनकर वंदना शाॅक्ड रह गई। तब तक अम्मा और सुधा जी राजेश को साथ लेकर वापस घर लौट आये। राजेश को देखते ही वंदना उसके पास दौड़ती हुई गई और बोली,
” आप ठीक तो है ना। ज्यादा चोट तो नहीं आई? “
लेकिन उसे देखकर राजेश ने कुछ नहीं कहा। बस अम्मा से ही बोला,
” अम्मा मैं आराम करना चाहता हूं”
कह कर वो अपने कमरे में चला गया। सुधा जी भी अपने घर रवाना हो गई। पर अम्मा वंदना से बोली-
” बहू तुझे पति नहीं गहने चाहिए ना। ये मकान बेच कर तुझे तेरे गहने दिलवा दूंगी। हम किराए के घर में रह लेंगे। पर मेरे बेटे को चैन से रहने दे। आज वो रो कर गया है घर से। सिर्फ तेरी जिद के कारण। एक बार उसके बगैर अपनी जिंदगी सोच कर देख। क्या तुम अकेली घर की जिम्मेदारी उठा लोगी। ऐसा तोहफा ही किस काम का जो किसी की जान पर ही बन जाए “
अम्मा जी के इस सवाल से ही वंदना सिहर गई। और रोती हुई अपने कमरे में आ गयी और राजेश से बोली-
” मुझे कोई गहने नहीं चाहिए। तुम हो तो सब कुछ है। मुझे माफ कर दो”
वंदना की बात सुनकर राजेश मुस्कुरा दिया,
” वंदना, तुमने मुझे समझा वही बहुत है। हम मध्यम वर्ग के लोगों के अपनी एक सीमा होती है। हम कितनी ही कोशिश कर ले उसके आगे बढ़ ही नहीं पाते। बस और मुझे कुछ नहीं चाहिए”
और आखिर राजेश ने भी वंदना को माफ कर दिया।
(अज्ञातिनी)